Sunday, December 14, 2014

मौसम का भी अलग…


मौसम का भी अलग-अलग असर होता है
कहीं जश्ने बहारा, कहीं पतझर होता है

दिल सहमता है, लरजता है, संभलता है
बड़ा मुश्किल ये मोहब्बत का सफर होता है
माजी की गलियों में किसे ढूंढता है मन का मलंग
कभी हंसता है, कभी अश्कों से तर होता है

जिन आंखों में चुपके से आ बसता है कोई
उनके लिए सहरा भी जैसे समंदर होता है
इसी आसमां में कोई परवाज भरता है
और किसी को बस गिरने का डर होता है

Saturday, December 6, 2014

ओ मोनालिसा !


1
तुम्हारी अमर
असंख्य रहस्यों में लिपटी
मुस्कान के सदके,
जिसने हैरान से ज्यादा 
हमेशा परेशान किया है मुझे
कि कैसे कोई
मुस्कराता रह सकता है
पांच सदियों तक निरंतर
बिना कुछ कहे.
तुम्हारी इस शाश्वत चुप्पी को देख
कभी-कभी तो लगता है 
कि तुम्हारा नाम मौनालिसा होता 
तो ज्यादा बेहतर होता.

2
क्या मुमकिन है कि
इन पांच सौ सालों में
तुमने वो कुछ भी न देखा हो
जो झेला है लगातार 
शेष संसार ने ?
दर्जनों  लड़ाईयां,
बीसियों महामारियां,
सैंकड़ों सुनामियां
और तमाम कुदरत के
और इंसानी कहर.
सच-सच बताना
क्या कभी तुम्हारी आंख से
नहीं गिरा एक भी आंसू?
या यूं ही मुस्कराती रही हो तुम
अपनी संगदिली के साथ?

3
तुम्हारी आंखों ने देखे होंगे
यकीनन हजार मौसम भी
इन पांच सदियों में...
पांच सौ पाले,
पांच सौ पतझर,
पांच सौ बहारें,
गर्मी, बारिशें और ठिठुरन...
इतने बदलावों के बीच
और इनके बावजूद
तुम्हारी स्मित रेखा
कभी जरा सी भी 
टस से मस हुई हो,
ऐसा कोई मामला 
अभी तक तो प्रकाश में नहीं आया

4
तुम्हारी इस सदाबहार
कालजयी मुस्कान के 
सम्मोहन से मुक्त होकर
जब मैंने पाया अवसर
तुम्हारी आंखों की गहराई में
उतरकर तुम्हारे हृदय की 
थाह लेने का 
तब मैंने जाना
राज तुम्हारे इस 
चिर मौनव्रत का.
सच ही तो है
जिसकी आंखें 
इतना स्पष्ट बोलती हों
उसके लबों को 
जरा सी भी जुंबिश की
जरूरत ही क्या है...

5
बेशक पूरी कायनात में
चर्चे हों तुम्हारी मुस्कान के,
लेकिन इससे कहीं ज्यादा
दिलचस्प हैं तुम्हारी आंखें.
कहते हैं कि इनकी पृष्ठभूमि में
कभी दिखती थी
उदासी की एक भरी-पूरी झील
जिस पर जमती गई 
वक्त की गर्द
बीतते सालों के साथ-साथ
परत-दर-परत...
सब की तरह 
मैं भी जीता रहा हूं
सदा इस डर के साथ
कि कहीं इस गर्द को 
पोंछने की जिद्दोजहद में
मिट न जाए
तुम्हारे होंठों की मुस्कान भी.

6
मेरी मोनालिसा !
न जाने वो कोई ख्वाब था
या फिर जादुई वक्फा कोई
कि एक दिन
मैंने देखा 
अपनी उनींदी आखें 
मल-मल कर
दीवार पर टंगी
तुम्हारी तस्वीर की जगह
सिर्फ एक कोरा कैनवास था
और तुम मेरे पास बैठी
ले रहीं थी काफी की चुस्कियां
मेरे ही प्याले से...
उस दिन जितनी मीठी काफी
न पहले लगी थी कभी
न उसके बाद ही.

7
ये मेरा वहम था
या वाकई हकीकत की बात कोई
कि मेरे साथ
जब भी होती थीं तुम
मुझे तुम्हारी आंखें 
मुस्कराती दिखती थीं 
और लब जुंबिशें लेते हुए,
गोया थक चुके हों
सदियों से एक जबरिया ओढ़ी 
मुस्कान का बोझ उठाए- उठाए.
तुम्हारे बार-बार कहने से
मुझे भी यकीं सा होने लगा
कि तुम्हारी यह मुस्कान
मेरे लिए है
और मेरी वजह से है
ठीक वैसे ही जैसे
तुम बन गई थीं 
मेरी खुशी की वजह.

8
तुम्हारी मुस्कराती आंखों में
जब भी देखा 
मैंने अक्स अपना
पल के हजारवें हिस्से में
एक नमी सी आकर 
धुंधला देती थी उसे
जैसे वक्त की गर्द को चीर
आंखों में पसरी 
उदासी की झील
उमड़ आई हो 
किनारों को छोड़कर....
पर तुमने कभी
जानने ही नहीं दी
मुझे अपनी उदासी की वजह
जैसे छिपाकर रखे थे
अपनी मुस्कान के राज
कई सदियों तक.

9
कैनवास से बाहर
जब हकीकत बन गई थीं तुम
तो एक भरी-पूरी दुनिया
तुम्हारे सामने थी
जानने, महसूस करने 
और जीने के लिए...
नित नए लोग,
नित नए प्रयोग
फैलता गया तुम्हारे
प्रशंसकों का दायरा
और मैं सिमटता गया निरंतर
परिधि की ओर
अपनी अव्यक्त व्यथाओं
और कुछ जाहिरा शिकायतों के साथ३
तुम्हारी बदलती प्राथमिकताओं में
मेरे लिए कोई जगह न थी
अब मुझे देने के लिए
तुम्हारे पास 
वक्त की जगह बहाने थे 
और जवाब की जगह 
वही चिर-परिचित खामोशी.

10
अब जब भी कभी-कभार
मैं मिलता हूं तुमसे 
तो समझ नहीं पाता
क्यों तुम्हें मुस्कराते देखकर
अब मुझे खुशी नहीं होती पहले सी
तुम्हारी जो मुस्कान
मकसद हुआ करती थी मेरे जीने का
क्यों चुभने लगती है  मुझे?
कहां चाहा था मैंने
कुछ और कभी
तुम्हारी खुशी के सिवा.
ये तो शर्त न थी कि
हमेशा मैं ही वजह बनूं
तुम्हारी खुशी की...
फिर क्यों उठती है
दिल में एक हूक सी
जब किसी और का साथ
या कोई बात
ले आती है तुम्हारे होंठों पे
जरा सी भी मुस्कान?

11
कुछ दिनों पहले
आई एक खबर
कि उन्होंने ढूंढ ली है
तुम्हारी एक और सहोदरा
एक नई मोनालिसा
जो रची गई थी 
तुम्हारे साथ-साथ ही.
वो ये भी कहते हैं कि
ये मोनालिसा
है तुमसे ज्यादा खूबसूरत
और तरोताजा भी.
इस खबर से तुम्हें 
जितनी ईर्ष्या हुई होगी 
उससे ज्यादा खुशी हुई है मुझे...
गलत मत समझो
वो मेरे जीवन में
तुम्हारी जगह नहीं लेने वाली.
पर मददगार जरूर बन सकती है
तुम्हारी वापसी में...
किसी एक मुनासिब दिन
मौका देखकर
तुम्हारे नवप्रशंसकों के बीच
छोड़ आऊंगा इस नई मोनालिसा को
और चुपके से ले आऊंगा तुम्हें
वापस अपनी उसी दुनिया में
जहां काफी का 
एक आधा भरा कप
अभी भी इंतजार कर रहा है
तुम्हारी अगली चुस्की का.

Tuesday, December 2, 2014

पानी

जब बात चले ठहरे पानी की
कहीं उथलेकहीं गहरे पानी की
तन से ज्यादा मन को छूतीं
जब उड़ें हवा से लहरें पानी की
कब देखें हमें बड़े लाड़ से और
कब फिर जाएं नजरें पानी की
बस अपनी कहतानहीं सुनता है ये
करें किससे शिकायत बहरे पानी की

Wednesday, May 6, 2009

भोर











छंटे अंधेरा फूटे पौ

प्रकट हो प्रभात

भोर की मद्धम हवा चले

झूम उठें सब डाली पात


धूप की चादर उजियारी

लेकर किरणों की सौगात

बड़े मान से सूरज आए

रथ में जोड़े घोड़े सात

सांझ जब ढलने को आए

महक उठे नैनों में रात

चंदा आकर उकड़ू बैठे

जैसे नानी रही हो चरखा कात

है रोज रोज ही होता ये

फिर भी नित नई लगती बात

कुदरत का ये खेल है ऐसा

जिसमें नहीं कोई शह और मात

Friday, May 11, 2007

तुम ...


पावस तुम हॊ बहार तुम हॊ

वसुधा का श्रंगार तुम हॊ

पूस की ठंडी रातॊं सी

बच्चॊं की तुतली बातॊं सी

तन मन कॊ आह्लालादित करतीं

बासंती मधुर बयार तुम हॊ

भीनी खुश्बू वाले फूलॊं सी

सावन में झूमते झूलॊं सी

जहां भी जातीं खुशियां लातीं

मरु में राग मल्हार तुम हॊ

कभी बिंदु सी लगती हॊ

कभी सिंधु सी लगती हॊ

जीवन के ताने बाने का

सार तुम विस्तार तुम हॊ

अनलिखी एक कल्पना

अरचित सी एक अल्पना

रंग शब्द जिसे कह न पाएं

अमूर्त तुम आकार तुम हॊ

Sunday, April 29, 2007

चेहरे

कुछ अपने से
कुछ सपने से
इसके उसके
जाने किसके
या तेरे मेरे
ये सारे चेहरे

सांसो मे महके
खुशबु बन के
फूलों मे मुस्काते चेहरे
बनते मिटते
मिटते बनते
लहरो मे बल खाते चेहरे

पतझर मे झरते
पान्खुरियों से
पुरबा मे बजते
बांसुरियों से
ख्वाब दिखा के
सो जाते चेहरे

सीने में धड़कें
धड़कन जैसे
ऑंखॊं में चमकें
बचपन जैसे
चेहरॊं के पीछे
छिप जाते चेहरे

सागर से गहरे
अंबर से नीले
भीगे भीगे
गीले गीले
ऑंसू में धुल
खिल जाते चेहरे

मन के कॊरे
दरपन से सच्चे
जग की सारी
भाषाओं से अच्छे
बिन बॊले सब
कह जाते चेहरे

शमा से रॊशन
शाम से धुंधले
चंदा से शीतल
सूरज से उजले
कितने रूप
दिखाते चेहरे

अंजानॊं से
बेगानॊं से
जॊड़ते जाते
मन के नाते
राहॊं में जब
मिल जाते चेहरे

बादल बन
उड़ जाते हैं कुछ
दरिया में
बह जाते हैं कुछ
कुछ यादॊं में भी
रह जाते चेहरे

आ इनकॊ देखें
बंद पलकॊं में
रात दॊपहर
सांझ सवेरे
तेरे मेरे

ये सारे चेहरे

तुम्हारा प्यार

जब ना कोई राह मिलेगी
तेरे गम के मारों को,
भर रात बैठकर कोसेंगे
हवा चांद ओर तारों को

लिखकर ऊपर नाम
जिन हाथों भेजा पैगाम
तुम तक आते साल लगेंगे
उन बूढ़े बेदम हरकारो को

नींद उडायी चैन चुराया
दिल को जाने कहॉ छिपाया
जो ढूँढ के ला दें,बुलवा भेजो
ऐसे शातिर एयारों को

लहर उठी पानी से ऐसे
बुला रही थी हम को जैसे
डूब गए कश्ती को लेकर
फेंक दूर पतवारों को

कितना जालिम होता प्यार
कैसे बतलाएं तुम को यार
जैसे कोई हाथ पे रख ले
सुर्ख दहकते अन्गारो को

बडे बडे तुफान रूक जाते
शिखरों के भी सिर झुक जाते
तूती से चुप होते देखा
शोर मचाते नक्कारों को

जो कहे इश्क की दवा नहीं
शायद वो तुमसे मिला नहीं
तुम छू भी लो तो अच्छा कर दो
प्यार से मरते बीमारों को